दिया है दिल अगर उसको, बशर[1] है क्या कहिये
हुआ रक़ीब[2] तो हो, नामाबर[3] है, क्या कहिये

ये ज़िद, कि आज न आवे और आये बिन न रहे
क़ज़ा[4] से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिये

रहे है यों गहो-बेगह[5] कि कूए-दोस्त[6] को अब
अगर न कहिये कि दुश्मन का घर है, क्या कहिये

ज़हे-करिश्मा[7], कि यों दे रखा है हमको फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है, क्या कहिये

समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल[8]
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र[9] है, क्या कहिये

तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा[10] का ख़याल
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या, कहिये

उन्हें सवाल पे ज़ोअ़मे-जुनूं[11] है, क्यूँ लड़िये
हमें जवाब से क़तअ़ए-नज़र[12] है, क्या कहिये

हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है[13], क्या कीजे
सितम, बहा-ए-मताअ़-ए-हुनर[14] है, क्या कहिये

कहा है किसने कि "ग़ालिब" बुरा नहीं लेकिन
सिवाय इसके कि आशुफ़्ता-सर[15] है क्या कहिये

शब्दार्थ:
  1. मनुष्य
  2. प्रतियोगी
  3. संदेशवाहक
  4. किस्मत
  5. समय-असमय
  6. यार की गली
  7. कमाल का चमत्कार
  8. हाल-चाल पूछना
  9. सड़क के किनारे
  10. वफ़ा के रिश्ते का अंत
  11. उन्माद का घमंड
  12. उपेक्षा
  13. ईर्ष्या अचछा लिखने की सज़ा है
  14. कलारूपी निधि
  15. भुलक्कड़
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