बे-ऐतदालियों से, सुबुक[1] सब में हम हुए
जितने ज़ियादा हो गये उतने ही कम हुए

पिन्हां था दामे-सख़्त क़रीब आशियाने के
उड़ने न पाये थे कि गिरफ़्तार हम हुए

हस्ती हमारी अपनी फ़ना पर दलील है
यां तक मिटे कि आप हम अपनी क़सम हुए

सख़्ती-कशाने-इश्क़[2] की पूछे है क्या ख़बर
वो लगा रफ़्ता-रफ़्ता सरापा अलम[3] हुए

तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफ़ी, कि दहर में
तेरे सिवा भी हम पे बहुत-से सितम हुए

लिखते रहे जुनूं की हिकायत-ए-ख़ूंचकां[4]
हरचंद उसमें हाथ हमारे क़लम[5] हुए

अल्ला-रे तेरी तुन्दी-ए-ख़ूं, जिस के बीम़[6] से
अज्ज़ा-ए-नाला[7] दिल में मेरे रिज़्क़े-हम हुए

अहले हवस की फ़तह है, तर्क-ए-नवर्द-ए-इश्क़[8]
जो पाँव उठ गए वही उन के अ़लम हुए

नाले अदम में चंद हमारे सुपुर्द थे
जो वां न खिंच सके सो वो यां आके दम[9] हुए

छोड़ी 'असद' न हमने गदाई में दिल-लगी
साइल[10] हुए तो आ़शिक़-ए-अहल-ए-करम हुए

शब्दार्थ:
  1. लज्जित
  2. प्रेम का दुःख सहने वाले
  3. सर से पांव तक दुःख की मूर्ती
  4. रक्त-रंजित की कहानी
  5. कट जाना
  6. भय
  7. रुदन के टुकड़े
  8. प्रेमोन्माद के संघर्ष को त्याग देना
  9. सांस लेना
  10. भिखारी
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