प्रिये ! आई शरद लो वर!

चटुल शफरी सुभग काञ्ची-सी मनोरम दीखती है

हंस श्रेणी धवल बैठी निकट मुक्ताहार-सी है

वे नितंबों से सुमांसल पुलिन विस्तृत है रुचिर-तर

एक प्रमदा-सी नदी होती प्रवाहित मन्द-मंथर

प्रिये ! आई शरद लो वर!
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