क्वणित नूपुर गूँज, लाक्षा रागरंजित चरण धर-धर

प्रिय नितंबिनि सलज पग-पग पर गुँजाती हंस कल स्वर

मदन छवि साकार करतीं स्वर्ण रशना को डुला कर

तुहिन से सित हार चंदन लिप्त स्तन पर थिरक थिरक कर

इन्द्रजाल न डाल देते, कर न किसका हृदय आतुर

प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !

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