क्लांत तन-मन रे कलापी तीक्ष्ण ज्वाला मे झुलसता

बर्ह में धर शीश बैठे सर्प से कुछ न कहता,

भद्रमोथा सहित कर्म शुष्क-सर को दीर्घ अपने

पोतृमण्डल से खनन कर भूमि के भीतर दुबकने

वराहों के यूथ रत हैं, सूर्य्य-ज्वाला में सुलग कर

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!

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