सविभ्रम सस्मित नयन बंकिम मनोहर जब चलातीं

प्रिय कटाक्षों से विलासिनी रूप प्रतिमा गढ़ जगातीं

प्रवासी उर में मदन का नवल संदीपन जगा कर

रात शशि के चारु भूषण से हृदय जैसे भुला कर

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!

Comments
आमच्या टेलिग्राम ग्रुप वर सभासद व्हा. इथे तुम्हाला इतर वाचक आणि लेखकांशी संवाद साधता येईल. telegram channel