सुधर-मधुर विचित्र है जलयन्त्र मन्दिर और गृहो में

चन्द्रकान्ता मणि लटकती, झूलती वातायनों में

सरस चन्दन लेप कर तन ग्लानि हरने को निरत मन,

व्यस्त है सब, लो प्रिये ! अब हँस उठा है नील निस्वन,

तिमिर हर कर, अमृत निर्झर शान्त शशधर मुसकराया,

प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel