स्वेद से आतुर, चपल कर वस्त्र निज भारी हटा कर

योषिताएँ बहुमूल् सुरम्य अपने पौंछ सत्वर

गोल उन्नत गौर यौवनमय स्तनों को घेर देतीं

पारदर्श महीन अंशुक में उन्हें बांध लेतीं

शान्ति के निश्वास ले उद्वेग ऊष्मा का हटाकर

प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !

Comments
आमच्या टेलिग्राम ग्रुप वर सभासद व्हा. इथे तुम्हाला इतर वाचक आणि लेखकांशी संवाद साधता येईल. telegram channel