धम्मचक्कप्पवत्तनसुत्तं
एवं मे सुतं | एकं समयं भगवा वाराणसियं विहरति इसिपतने भिगदाये || तत्र खो भगवा पंचविग्गये भक्खू आमन्तेसि | द्वेऽमे भिक्खवे अन्ता पब्बजितेन न सेवितब्बा | करमे द्वे ? यो चायं कामेसु कामसुखल्लिकानुयोगो हीनोगम्मो पोथुज्जनिको अनरियो अनत्थसंहितो | यो चायं अत्तकिलमथानुयोगो दुक्खो अनरियो अनत्थसंहितो || एते खो भिक्खवे उभो अन्ते अनुपगम्म मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति || कतमा च सा भिक्खवे मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति | अयमेव अरियो अट्टंगिको मग्गो | सेय्यथीदं | सम्मादिट्ठि | सम्मासंकपो | सम्मावाचा | सम्माकम्मन्तो | सम्माआजीवो | सम्मावायामो | सम्मासति | सम्मासमाधि अयं खो सा भिक्खवे मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति ||
असें मी ऐकलें आहे | एके समयीं भगवान् वारणसी येथें ऋषिपत्तनांत मृगदावामध्यें राहत होता || तेथें भगवान् पंचवर्गीय भिक्षूला उद्देशून म्हणाला | भिक्षूंनो, प्रव्रजितानें ह्या दोन अन्तांला (टोकाना) जाऊं नये | विषयसुखांत लोळत राहणें हा हीन, ग्राम्य, हलक्या दर्जाच्या लोकांनी अंगीकारलेला, अनार्थ व अनर्थकारक पहिला अन्त | आणि देहदण्डन करणें हा दु:खकारक, अनार्य आणि अनर्थकारक दुसरा अन्त || हे दोन्ही अन्त न स्वीकारता | तथागतानें उपशमाला, अभिज्ञेला, संबोधाला आणि निर्वाणाला कारणीभूत होणारा दृष्टीदायक आणि ज्ञानदायक मध्यम मार्ग शोधून काढला आहे || भिक्षूंनो, तथागतानें शोधून काढलेला उपशमाला अभिज्ञेला, संबोधाला आणि निर्वाणाला कारणीभूत होणारा दृष्टीदायक आणि ज्ञानदायक मार्ग कोणता ? हाच तो आर्य अष्टांगिक मार्ग होय | तो कोणता ? सम्यक् दृष्टी | सम्यक् संकल्प | सम्यक् वाचा | सम्यक् कर्म | सम्यक् आजीव | सम्यक् व्यायाम | सम्यक् स्मृती | सम्यक् समाधि | तथागतानें हाच तो उपशमाला, अभिज्ञेला, संबोधाला आणि निर्वाणाला कारणीभूत होणारा दृष्टीदायक आणि ज्ञानदायक मध्यम मार्ग शोधून काढला आहे ||
इदं खो पन भिक्खवे दुक्खं अरियसच्चं | जाति पि दुक्खा | जरा पि दुक्खा | व्याधि पि दुक्खा मरणं पि दुक्खं | अप्पियेहि संपयोगो दुक्खो | पियेहि विप्पयोगो दुक्खो | यं पिच्छं न लाभति तं पि दुक्खं | संखित्तेन पंचुपादानक्खन्धा पि दुक्खा || इदं खो पन भिक्खवे दुक्खसमुद्यं अरियसच्चं यायं तण्हा पोनोब्भविका नंदीरागसहगता तत्रतत्राभिनंदिनी | सेय्यथींद | कामतण्हा | भवतण्हा | विभवतण्हा || इद खो पन भिक्खवे दुक्खनिरोधं अरियसच्चं | यो तस्सा येवतण्हाय असेसविरागनिरोधो चागो पटिनिस्सगो मुक्ति अनालयो || इदं खो पन भिक्खवे दुक्खनिरोधगामिनिपटिपदा अरियसच्चं | अयमेव अरियो अट्ठगिको मग्गो | सेय्यथिदं सम्मादिट्ठ | सम्मासंकप्पो | सम्मावाचा | सम्माकम्मन्तो | सम्माआजीवो | सम्मावायामो | सम्मासति | सम्मासमाधि |
भिक्षूंनो, हें दु:ख आर्यसत्य आहे | जन्म, जरा, व्याधि आणि मरण हीं दु:खकारक आहेत | अप्रियांचा संबंध व प्रियांचा वियोग दु:खकारक होतो | इच्छिलेली वस्तु न मिळाली तरी दु:ख होतें | थोडक्यांत सांगावयाचें म्हणजे पांच उपादा१नस्कंधच(१. रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार व विज्ञान हे पांच स्कंध होत; आणि ते विसनामय असले म्हणजे त्यांस उपदानस्कंध म्हणतात. )दु:खकारक आहेत || भिक्षूंनो, हें दु:खसमुद्य आर्यसत्य आहे | ही जी पुन:पुन: उद्धवणारी, जेथें तेथें सुख शोधणारी, लोभयुक्त तृष्णा | ती कोणती ? कामतृष्णा | भवतृष्णा | विभवतृष्णा (विनाशतृष्णा) || भिभूंनो, हें दु:खनिरोध आर्यसत्य आहे | जो त्याच तृष्णेचा अत्यंत वैराग्यानें निरोध, त्याग, प्रतिनिसर्ग, मुक्ति आणि अनासक्ति (तेंच हे सत्य) || भिक्षूंनो, हे दु:खनिरोधगामी मार्ग आर्यसत्य आहे | हाच तो आर्य अष्टांगिक मार्ग होय | तो कोणता ? सभ्यक् दृष्टी | सभ्यक् संकल्प | सभ्यक् वाचा | सभ्यक् कर्म | सभ्यक् आजीव | सभ्यक् व्यायाम | सभ्यक् स्मृति | सभ्यक् समाधि ||
एवं मे सुतं | एकं समयं भगवा वाराणसियं विहरति इसिपतने भिगदाये || तत्र खो भगवा पंचविग्गये भक्खू आमन्तेसि | द्वेऽमे भिक्खवे अन्ता पब्बजितेन न सेवितब्बा | करमे द्वे ? यो चायं कामेसु कामसुखल्लिकानुयोगो हीनोगम्मो पोथुज्जनिको अनरियो अनत्थसंहितो | यो चायं अत्तकिलमथानुयोगो दुक्खो अनरियो अनत्थसंहितो || एते खो भिक्खवे उभो अन्ते अनुपगम्म मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति || कतमा च सा भिक्खवे मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति | अयमेव अरियो अट्टंगिको मग्गो | सेय्यथीदं | सम्मादिट्ठि | सम्मासंकपो | सम्मावाचा | सम्माकम्मन्तो | सम्माआजीवो | सम्मावायामो | सम्मासति | सम्मासमाधि अयं खो सा भिक्खवे मज्झिमा पटिपदा तथागतेन अभिसंबुद्धा चक्खुकरणी ञाणकरणी उपसमाय अभिञ्ञाय संबोधाय निब्बानाय संवत्तति ||
असें मी ऐकलें आहे | एके समयीं भगवान् वारणसी येथें ऋषिपत्तनांत मृगदावामध्यें राहत होता || तेथें भगवान् पंचवर्गीय भिक्षूला उद्देशून म्हणाला | भिक्षूंनो, प्रव्रजितानें ह्या दोन अन्तांला (टोकाना) जाऊं नये | विषयसुखांत लोळत राहणें हा हीन, ग्राम्य, हलक्या दर्जाच्या लोकांनी अंगीकारलेला, अनार्थ व अनर्थकारक पहिला अन्त | आणि देहदण्डन करणें हा दु:खकारक, अनार्य आणि अनर्थकारक दुसरा अन्त || हे दोन्ही अन्त न स्वीकारता | तथागतानें उपशमाला, अभिज्ञेला, संबोधाला आणि निर्वाणाला कारणीभूत होणारा दृष्टीदायक आणि ज्ञानदायक मध्यम मार्ग शोधून काढला आहे || भिक्षूंनो, तथागतानें शोधून काढलेला उपशमाला अभिज्ञेला, संबोधाला आणि निर्वाणाला कारणीभूत होणारा दृष्टीदायक आणि ज्ञानदायक मार्ग कोणता ? हाच तो आर्य अष्टांगिक मार्ग होय | तो कोणता ? सम्यक् दृष्टी | सम्यक् संकल्प | सम्यक् वाचा | सम्यक् कर्म | सम्यक् आजीव | सम्यक् व्यायाम | सम्यक् स्मृती | सम्यक् समाधि | तथागतानें हाच तो उपशमाला, अभिज्ञेला, संबोधाला आणि निर्वाणाला कारणीभूत होणारा दृष्टीदायक आणि ज्ञानदायक मध्यम मार्ग शोधून काढला आहे ||
इदं खो पन भिक्खवे दुक्खं अरियसच्चं | जाति पि दुक्खा | जरा पि दुक्खा | व्याधि पि दुक्खा मरणं पि दुक्खं | अप्पियेहि संपयोगो दुक्खो | पियेहि विप्पयोगो दुक्खो | यं पिच्छं न लाभति तं पि दुक्खं | संखित्तेन पंचुपादानक्खन्धा पि दुक्खा || इदं खो पन भिक्खवे दुक्खसमुद्यं अरियसच्चं यायं तण्हा पोनोब्भविका नंदीरागसहगता तत्रतत्राभिनंदिनी | सेय्यथींद | कामतण्हा | भवतण्हा | विभवतण्हा || इद खो पन भिक्खवे दुक्खनिरोधं अरियसच्चं | यो तस्सा येवतण्हाय असेसविरागनिरोधो चागो पटिनिस्सगो मुक्ति अनालयो || इदं खो पन भिक्खवे दुक्खनिरोधगामिनिपटिपदा अरियसच्चं | अयमेव अरियो अट्ठगिको मग्गो | सेय्यथिदं सम्मादिट्ठ | सम्मासंकप्पो | सम्मावाचा | सम्माकम्मन्तो | सम्माआजीवो | सम्मावायामो | सम्मासति | सम्मासमाधि |
भिक्षूंनो, हें दु:ख आर्यसत्य आहे | जन्म, जरा, व्याधि आणि मरण हीं दु:खकारक आहेत | अप्रियांचा संबंध व प्रियांचा वियोग दु:खकारक होतो | इच्छिलेली वस्तु न मिळाली तरी दु:ख होतें | थोडक्यांत सांगावयाचें म्हणजे पांच उपादा१नस्कंधच(१. रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार व विज्ञान हे पांच स्कंध होत; आणि ते विसनामय असले म्हणजे त्यांस उपदानस्कंध म्हणतात. )दु:खकारक आहेत || भिक्षूंनो, हें दु:खसमुद्य आर्यसत्य आहे | ही जी पुन:पुन: उद्धवणारी, जेथें तेथें सुख शोधणारी, लोभयुक्त तृष्णा | ती कोणती ? कामतृष्णा | भवतृष्णा | विभवतृष्णा (विनाशतृष्णा) || भिभूंनो, हें दु:खनिरोध आर्यसत्य आहे | जो त्याच तृष्णेचा अत्यंत वैराग्यानें निरोध, त्याग, प्रतिनिसर्ग, मुक्ति आणि अनासक्ति (तेंच हे सत्य) || भिक्षूंनो, हे दु:खनिरोधगामी मार्ग आर्यसत्य आहे | हाच तो आर्य अष्टांगिक मार्ग होय | तो कोणता ? सभ्यक् दृष्टी | सभ्यक् संकल्प | सभ्यक् वाचा | सभ्यक् कर्म | सभ्यक् आजीव | सभ्यक् व्यायाम | सभ्यक् स्मृति | सभ्यक् समाधि ||
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