बेदब्भ जातक की गाथा – [जो अनुचित उपायों में धन पाना चाहता है वह नष्ट हो जाता है। चेतिय देश के चोरों ने वैदर्भ ब्राह्मण को मार डाला और वे मब भी मृत्यु को प्राप्त हुए।]
वर्तमान कथा – भिक्षु को बुद्ध की सीख
जेतवन में विहार करते समय भगवान बुद्ध ने एक भिक्षु से कहा, “ऐसा नहीं है कि तू केवल इसी जन्म में अच्छी बात मानने से इनकार करता है। पूर्व जन्म में भी तेरी यही अवस्था थी, जिसके कारण तुझे प्राण गंवाने पड़े थे और तेरे साथ एक सहस्र मनुष्यों की और भी प्राण-हानि हुई थी।” जिज्ञासा करने पर उन्होंने उसके पूर्व जन्म की कथा यानी लालची चोरों की कहानी इस प्रकार बताई।
अतीत कथा – धन के लिए लालची चोरों द्वारा एक-दूसरे की हत्या
पूर्व समय में काशी में एक ब्राह्मण रहता था। इस ब्राह्मण को वैदर्भ मंत्र सिद्ध था, जिसके द्वारा वह ग्रह-नक्षत्रों का विशेष योग पाने पर आकाश से रत्नों की वर्षा करा सकता था। उस समय बोधिसत्व एक शिष्य के रूप में उसके पास विद्याभ्यास करते थे।
एक दिन वह अपने शिष्य को साथ ले किसी काम से चेतिय राष्ट्र की ओर गया। जब वे घने जंगलों में होकर जा रहे थे, उस समय सहसा उन्हें पांच सौ पेसनक चोरों ने घेर लिया। ये चोर किसी का वध नहीं करते थे। वे लोगों को पकड़ लेते थे और निश्चित धन मिल जाने पर छोड़ देते थे।
उन्होंने गुरु को रोक लिया और शिष्य (बोधिसत्व) को धन लाने को भेजा। चलते समय शिष्य ने कहा, “गुरुदेव! डरियेगा नहीं। मैं धन लाकर शीघ्र ही आपको मुक्ति दिला दूंगा।”
शिष्य के चले जाने पर गुरु ने हिसाब लगाकर देखा तो रत्न वर्षा के लिये उपयुक्त योग उसी दिन था। उन्होंने सोचा, “क्यों न रत्न बरसा कर इन चोरों को संतुष्ट कर दूं और स्वयम् मुक्त हो जाऊँ।”
उन्होंने चोरों से कहा, “मेरा बंधन खोल दो। मैं तुम्हें अपार रत्न-राशि दिला सकता हूँ।”
चोरों ने ब्राह्मण का आदेश मानकर उसे नहला धुलाकर, सुगंधित द्रव्यों का लेप कर, उसे पुष्प मालाएँ पहिनाईं। आकाश की ओर देख, समय का अनुमान कर ब्राह्मण ने मंत्र का जाप आरम्भ किया। थोड़ी ही देर में एक सुनहरा बादल आकाश में प्रगट हया और पृथ्वी पर रत्न बरसने लगे। चोरों ने धन समेट लिया और ब्राह्मण से क्षमा मांगकर उसका बड़ा सम्मान किया। इसके पश्चात् वे सब एक ओर को चल दिये।
जंगल में थोड़ी दूर जाने पर उन्हें चोरों का एक दूसरा दल मिला, जिसने उन्हें पकड़ लिया। यह पूछने पर कि “हमें क्यों पकड़ा है,” उन्होंने कहा, “हमें धन चाहिए।” चोरों ने कहा, “यह हमारे साथ जो ब्राह्मण है वह आकाश से धन की वर्षा कराता है। हमें भी यह धन इसी ने दिलाया है।”
जब चोरों ने ब्राह्मण से धन बरसाने को कहा तब उसने उत्तर दिया, “धन की वर्षा विशेष योग आने पर ही हो सकती है। तुम्हें एक वर्ष ठहरना होगा।”
चोरों को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा, “क्यों रे दुष्ट! इन लोगों के लिये तो अभी धन बरसाया था और हमें एक वर्ष ठहरने को कहता है।”
ऐसा कह तलवार से उसके दो खण्ड कर डाले। अब दोनों चोर दलों में युद्ध प्रारंभ हुआ। पहले वाले सब चोर मारे गए। पीछे वाले चोर सब धन लेकर जंगल में चले गए।
जंगल में धन के बँटवारे पर उन चोरों में भी झगड़ा हो गया। भयंकर युद्ध में वे सब मारे गए। केवल दो व्यक्ति बच रहे।
दोनों चोरों ने सब धन एक तालाब के पास गाड़ दिया। एक खड्ग लेकर पहरा देने लगा और दूसरा चावल पकाने लगा, क्योंकि दोनों को खूब भूख लगी थी। परन्तु दोनों के मन में पाप पूरी तरह समाया हुआ था। प्रत्येक अपने साथी को मारकर समस्त धन स्वयम् लेने की इच्छा रखता था।
चावल पका लेने पर चोर ने स्वयम् भोजन किया और शेष में विष मिलाकर अपने साथी के पास ले गया। इधर प्रहरी चोर ने सोचा, “इस कंटक को तुरन्त ही नष्ट कर डालना चाहिए।” अतः जब उसका साथी भात लेकर उसके निकट आया, उसी समय उसने तलवार से उसपर आक्रमण कर उसे मार डाला। प्रहरी भूखा था। अतः सपाटे से सब चावल खा गया और विष के प्रभाव से मर गया।
शिष्य रूप में बोधिसत्व जब धन लेकर लौटे, उस समय उन्होंने वन में केवल शवों के ढेर ही पाए। यह कथा सुनाकर भगवान ने उपरोक्त गाथा कही। जो अनुचित उपायों में धन पाना चाहता है वह नष्ट हो जाता है, जैसा लालची चोरों की कहानी स्पष्ट बताती है।