संपूर्ण विश्व को खगोल विज्ञान देने का श्रेय भी भारत को ही जाता है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। प्रोफेसर विंटरनिट्ज इस बात को मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। इससे पहले वेद वाचिक परंपरा द्वारा संरक्षित रखे गए  |

वैदिक काल में खगोल विज्ञान को ज्योतिष कहा जाता था। गुप्तकाल में वेदों के इस खगोलीय विज्ञान को भविष्य देखने के विज्ञान में बदल दिया गया, जो कि भारत के लिए दुर्भाग्य साबित हुआ।
वेदांगा ज्योतिशा में सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्रों, सौरमंडल के ग्रहों और ग्रहण के विषय में जानकारी दी गई है। वेदों के ज्योतिष अंग में संपूर्ण ब्रह्मांड की गति और स्थिरता का विवरण मिलता है। आर्यभट्ट ने वेद, उपनिषद आदि का अध्ययन कर ने के बाद ही कहा था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर रहते हुए सूर्य की परिक्रमा पूरी करती है। आर्यभट्ट ने इस रहस्य को विस्तार से बताकर विश्‍व के समक्ष रखा। उन्होंने पांचवीं सदी में यह बताया दिया था कि पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में 356 दिन 5 घंटे और 48 सेकंड का समय लेती है।

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