भक्ति और शक्ति की दृष्टि से ही नहीं, धन सपटा की दृष्टि से भी चित्तौड सदा ही अतुलनीय रहा। भक्ति के क्षेत्र में भोज और मीरा की कोई बराबरी नहीं कर पाया धन सपदा की दृष्टि से भी जितने खजाने यहा है उतने पूरे विश्व में कहीं अन्यत्र नहीं. मिन्नंगे। मेवाड भूमि हीरे जवाहरात के लिए बड़ी प्रसिद्ध रही है। यहा कोई किला यात्रि महल ऐसा नहीं मिलेगा जहा हीरे जवाहरात के खजाने न हो ।गणा और राणिया सब के सब हीरे जवाहरात के आभूषणो से लदे रहते थे। राणा की पगड़ी पर ही करोड़ों के दर सुशोभित रहते। यही नहीं, इनके हाथी घोड़े तक सोने के आभूषणों में लदे रहा।

भामाशाह युद्धवीर ही नही, उतना ही दानवीर था। दानवीर के संदर्भ में भामाशा का नाम सर्वत्र ही सुनने को मिलता है। आज तो यह नाम दानवीर का पर्याय ही बना हुआ है। किले पर भामाशाह की हवेली देखने से यह विदित हो जायगा कि गजकाज के सचालन में इनका कितना जबर्दस्त योगदान रहा होगा हवेली के सबसे ऊपरी क्क्ष की छत के भीतर जो पुतलियां बनी हुई है वे ही तब हीरे जवाहरात से ठस भरी हुई थी तब तलधर में ही कई खजाने थे। भामाशाह ने १५० वर्ष की उम्र पाई। ये अपने जीवनकाल में तीन राणा -सांगा, उदयसिंह और प्रताप, के दीवान रहे।

प्रताप के साथ भामाशाह का नाम दानवीर के रूप मे सदा के लिए अमर हो गया जब इन्होंने अपनी निजी सर्वस्व सम्पदा भी प्रताप को अर्पित कर दी। यहा के मोती बाजार में हीरे जवाहरात की जो दुकानें लगती, दुकानदार सारे के सारे जवाहरात भामाशाह से खरीदकर ही बेचते थे। इस बाजार की दुकानों के नीचे पाच-पांच, सात-सात मजिले तलधर थे। एक तलघर हमने ऐसा देखा जिसकी दीवाल में से कोई धनकलश निकाल कर ले गया। इसके पास ही नाग की बड़ी गहरी मोटी बांबी देखी जिससे लगा कि कभी कोई मोआ नाग धन की रक्षा के लिए यहा रहा होगा|

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