जोधपुर के पास मंडोवर बड़ा प्राचीन और ऐतिहासिक नगर कहा जाता है। वहा जाकर कोई देखे तो उसे कल्पना नहीं करनी पड़ेगी पर पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने जो कुछ बताने को संग्रह कर रखा है, लोगबाग तो प्राय- वही देखकर चले आते है। ऊपर भी जहां तक सड़क बनी है वहां तक भी बहुत कम लोग जा पाते हैं। चारों ओर पत्थर ही पत्थर चट्टानें पसरी धसरी पड़ी है। वहा जो रचना आज भी जिस रूप में जमी बिखरी हड़बड़ हुई मिलती है उससे उस नगर का वैभव, उसकी समृद्धि, उसका ठाठबाट, ललित लावण्य और सौन्दर्य-शौर्य तथा कला-सस्कृति परिवेश खुल खुल खिलाखिला पड़ता है।

ऊपर जहां तक नजर जाती है पत्थर ही पत्थर, चट्टानें जमी बिखरी पडी है। कहते हैं कोस तक यह नगर फैला हुआ था। कई महल उल्टे पड़े हैं। ध्यान से देखने पर लगता है जैसे सारा नगर ही किसी ने उलट दिया है। हमने एक-एक चट्टान देखी, गिरे हुए महल-खंडहर देखे, सब कुछ यही-यही आभास दे रहे हैं। जब मैं अपना केमरा आँख पर टिकाये जा रहा था

मुझे एक बुढिया ने कहा भी – “लाला, कांई फोटू लेवे है, आखी नगरी ही उलटी पड़ी है।“

इतने में कल्लाजी साक्षात हो आये। उन्होंने सारी स्थिति स्पष्ट कर दी। बोले साढे सात हजार वर्ष पूर्व रावण ने यहां आकर मंदोधरी से विवाह किया था। मंदोधरी का पिता मंदूजी था। उसी के नाम से मडोवर नाम पड़ा।

हमें वह चंवरी बताई, पत्थर की बनी १० खंभों वाली जहां रावण का विवाह सम्पन्न हुआ। पास ही पत्थर में उत्कीर्ण बडा कलात्मक तोरण भी बताया जो अब तो टुकड़ों-टुकड़ों मे वहां पडा है परन्तु उसे देखने से यह पता तो लग ही जाता है कि यह विवाह कितना शाही ठाटबाट वाला और ऐश्वर्य सम्पन्न रहा होगा। इसके लिए कितनी तैयारी करनी पड़ी होगी। कितने कारीगरों ने रातदिन एक कर कई रात दिन काम कर विवाह को स्वर्गिक सुख दिया होगा अपनी भजन भान कला की कीर्ति गाथा तो वहा पड़े पत्थर स्वयं मुंह बोल बयान का गहे हैं।

कलाम ने एक महल के सर्वोच्च सिरे पर लेजाकर हमे बताया कि यर ध्वस्त महल? खण्डों का था। खण्ड ऊपर तथा इसके नीचे थे, नीचे के गवंड तलघर तो आज भी सुदिन। इसकी बनावट इस ढग की थी कि प्रत्येक खंड में जाने आने तथा हन्वा गंशनी पहचन का पूरा-पूरा प्रबंध था। आसपास के कुछ महलों के नीचे हम गये, उनके तलवा दग्द, जाने के स्थान देखे। बडी-बडी चट्टानों के नीचे दबे मुख्यद्वार देरखे जिनमे नीचे पटचा जाता है पर आज उन भीमकाय चट्टानों को कौन हिला सकता है। नीचे के तनाराम छिपे खजाने भी हैं जिनमें करोडों मन निधि टबी-छिपी पडी है।

एक तलघर में तो पृग मन्दिर दबा पडा है जिसकी दीवारों पर उत्कीर्ण रगबिरंगी आकृतियां आज भी वाजा लग रही है। वे स्थान देखे जहा रजपूत रहते, रानियां रहती और अपनी-अपनी कुल देवियों की पूजा करती तब ही जाकर अन्न जल ग्रहण करतीं। मंदोधरी का महल देखा। उसकी कुल देवी का पूजा स्थल आज भी वेसा ही है, पुराना होते हुए भी बहुत तामा, कई महान् ध्वस्त हो गये पर कई यू के यू जमे हुए है। जिसके झांकते मुह बोलते पत्थर कितन सुहावने, सौम्य और कातियुक्त लग रहे हैं। बडे-बडे दरवाजे विरान पड़े खंडहरों के मुक साक्षी हैं कि तब कैसी-कैसी रही होगी सारी रचना।

कल्लाजी ने बताया कि रावण जितना बलशाली था उतना ही अभिमानी, वह सारे ससार को अपने अधीन कर लेना चाहता था। उसने मेंदूजी को भी कह दिया कि वे उसके अधीन हो जायें। मेंदूजी को भला यह क्यों कर स्वीकार्य होता। उन्होंने अपने जंवाईराजजी का मान रखते हुए विनयपूर्वक रावण की यह बात नहीं मानी। रावण को कहा धैर्य था। वह बड़ा कुपित हुआ। उसने कुम्भकरण व मेधनाथ की सहायता से सारी नगरी को ही उलट दिया। इसलिए आज भी यह सारा नगर उल्टा पड़ा है। यहीं चवरी के पास गणी महल, जनाना महल के ध्वसावशेष देखे| कुछ कमरे तो यहां आज भी ऐसे हैं जिनमें की गई कला-कारीगरी देखते ही बनती हैं। वह रंग और रूप विन्यास आज भी वैसा ही बना हुआ है।

लोकदेवता कल्लाजी ने बताया कि प्राचीन इतिहास की सही जानकारी नहीं होने से बडा अर्थ का अनर्थ हो रहा है। हर बात का इतिहास भी तो नहीं लिखा गया। कौन इतिहासकार लिखता मंडोवर की यह कहानी। उसे कौन बताता? इसलिए बहुत सी चीजें काल की परतों में दबी पड़ी हैं जैसे मंडोवर बड़ी-बड़ी चट्टानों के नीचे औंधा पड़ा हुआ है। हमने राई-आंगन सभा मंडप हाथी-घोडों के अण दासियों के रहवास गृह चार्ज काल की परतों में दबी पड़ी हैं जैसे मंडोवर बड़ी-बड़ी चट्टानों के नीचे औंधा पड़ा हुआ है।

हमने राई-आंगन सभा मंडप हाथी-घोडों के अण दासियों के रहवास गृह रावण ने विवाह किया मंडोवर सब कुछ देखा|  नीचे वह एक पत्थर का महल तो सभी दर्शनार्थी देखते है। उसी से पता चलता है कि उस समय की पत्थर की कला-कारीगरी कितनी बेमिसाल बडी-चढी थी। बहुचर्चित गवण की लका के सम्बन्ध में पूछने पर कल्लाजी ने बताया कि वह लका तो पानी में, समुद्र में डूबी हुई है। उस लका का एक झूपड तिरुपति बालाजी है। लकापुरी पर राम ने 100 योजन का पुल बाधा था। तिरुपति वह स्थान है जहा राम- विभीषण मिलन हुआ था। उन्होंने कहा कि बातें तो कई हैं मैं बता भी दूगा तो जगत विश्वास नहीं करेगा।

उन्होंने बताया कि इसी मंडोवर में नीचे 3 सुरंगे हैं| इनमें से एक अयोध्या, दूसरी लका व तीसरी द्वारिका जाती है। ऐसा नहीं कि तबसे यह मडोवर ऐसा ही पड़ा हुआ है। इन्ही पत्थरों से नये महल बनते रहे और जगत बसता रहा। आज जो जोधपुर है उसका बहुत कुछ निर्माण यहीं के पत्थरों से हुआ है। उन्होंने बताया कि आज से तीन हजार वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने भी यहा आकर विवाह रचाया था। यह विवाह हुआ जामवंती से।

दरअसल यह वैवाहिक कार्यक्रम योजनाबद्ध नहीं रहा जैसा रावण का रहा। अर्जुन के साथ श्रीकृष्णजी मणि ढूढते-ढूंढते यहां आ गये। इसलिए कि वह मणि जामवती के पास थी। इससे वह खेल रही थी। कृष्णजी ने वह मणि मांगी तब जामवती का पिता जामवंत बोला - 'मणि दूगा पर उसके साथ-साथ इस बालकी को भी देना चाहूंगा'। कृष्णजी ने यह बात मानली तब वहीं उनका विवाह हो गया। मंडोवर अपने में बहुत कुछ छिपाये है। सारी की सारी परतें यों की यो जमी दबी पडी हैं। कौन खोले इन इतिहास-परतों को मडोवर के प्रस्तरों को| काल कितना हावी होता चलता है। ऐसे में मनुष्य की क्या बिसात। वह कहां-कहां जीयेगा वर्तमान मे कि भूत में या भविष्य में।

बहरहाल मंडोवर तो सबमें जीता हुआ अजीत बना हुआ है।

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