सील से भरी हुई यह छोटी सी कोठरी, जिसकी दीवारों से गरीबी असहाय
के असमर्थ साथी की तरह चिपटी हुई है।  
छत इतनी टूटी-फूटी जैसे गिरने
ही वाली हो। किसी जमाने में इसमें एक लैंप लटक रहा था, जिसका कंकाल
मात्र आज भी टंगा हुआ है।  
कालिख से पुते हुए चूल्हे के ऊपर एक पतीली,
जिसके किनारे ग़ायब हो चुके हैं, औंधी हुई हैं, और पास ही टाट में लिपटी
हुई और रस्सी में बंधी हुई एक अंगीठी पड़ी है-और एक टूटा हुआ चम्मच
भी, जिसकी यह दशा इसलिए हुई कि उससे एक दिन बासी और ठंडी कड़ाही
जबरदस्ती खुरची गई थी! 
काठ-कबाड़ से यह कोठरी अटी पड़ी है; एक झंगोला चारपाई पड़ी
है, जिस पर चिथड़ी चादरें हैं और बिना गिलाफ के फटे तकिए। 
एक तरफ को एक पालना भी पड़ा है; जिसमें एक बच्चा, जिसका
सिर बड़ा है और रंग पीला पड़ रहा है, लेटा हुआ सो रहा है। कुंजी और
कब्जोंदार एक बक्स रखा हुआ है, जिसका ताला खुला हुआ है; क्योंकि
कोई मूल्यवान चीज़ तो उसमें बच नहीं रही हैं, जिसकी हिफाज़त के लिए
ताले-कुंजी की ज़रूरत पड़े। 
 इसके सिवाय एक ओर मेज पड़ी हुई है और .
: तीन कुर्सियां भी, जो किसी ज़माने में लाल रंगी गई थी; फिर एक टुटियल
अलमारी भी वहीं उनसे सटी रखी है। 
 इतने सामान की कमी को पूरा करने
के लिये दो बाल्टियां हैं, जिनमें एक गंदे पानी से भरी है, और दूसरी साफ
से; और फिर एक बरोसी भी है। अब आसानी से समझा जा सकता है 
कि कोठरी में तिल रखने को भी जगह नहीं थी;-लेकिन फिर भी बेचारी
ने पति और पत्नी को जगह दे रखी है। 
चारपाई और पालने के बीच जो संदूक  रखा है, उस पर वह अधेड़
यहूदिन बैठी हुई है। 
उसके दाएं हाथ की तरफ एक छोटी-सी धुंधली-सी
खिड़की है और बाई तरफ मेज । वह हाथों में मोज़ा बुनती जाती है, पैरों
से पालना हिलाती जाती है। 
और वह सामने मेज पर बैठा झूम-झूमकर और गा-गाकर जो तालमुद*
पढ़ रहा है, उसे सुन रही है।  
बीच-बीच में कुछ शब्दों को वह खा जाता
है, और कुछ को जैसे जोर से बाहर खींच निकालता है, कुछ को बड़े मज़े
में रेंक-रेंक कर पढ़ता, और कुछ को ऐसे चबा जाता जैसे सूखी हुई मटर
को। अपनी जेब से वह रूमाल निकालता है, जो कभी लाल रंग का था
और साबित रहा होगा, उससे अपनी नाक और माथा पोंछता है; फिर उसे
गोद में रखकर कानों पर आए हुए बालों को ठीक करता है और नुकीली
तथा कुछ-कुछ कतरी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरता है। 
 किंतु फिर वह अपनी
दाढ़ी का कोई टूटा हुआ बाल निकालता है और उसे किताब के पन्‍नों के
बीच में रखकर गोद में पड़ा हुआ रूमाल उठा लेता है, और उसे सीधे मुंह
में रखकर चबाता है। इसके बाद पैर के ऊपर चढ़ाकर वह उन्हें हिलाने
लगता है।
और यह सब तो होता ही है, किंतु साथ ही उसके माथे में बल पड़ते
जाते हैं-कभी सीधे-सीधे और कभी टेढ़े-टेढ़े और इतने गृहरे कि उनमें भौंहें
खो जाती हैं।  
कभी ऐसा लगने लगता है जैसे कि उसके सीने में कोई दर्द
उठा हो, क्‍योंकि वह अपने सीने पर हाथ रखकर जोर से दबा देता है। 
 यकायक वह अपना सिर बाईं तरफ, को झुका लेता है। बाएं नथुने में
उंगली डालकर छींक लेता है। 
 फिर अपना सिर सीधी तरफ्‌ को झुकाता
है और सीधे नथुने में उंगली डालकर छींक लेता है। बीच-बीच में वह हुलास
- भी सूंधता जाता है। पैर खींचकर बैठ जाता है। आवाज़ तेज हो जाती है।
कुर्सी चरमराती है और मेज खड़खड़ाती है।
किन्तु पालने में सोया हुआ बच्चा जागता नहीं, क्योंकि यह जो शोर

हो रहा है, वह तो रोज़ ही होता है! उसके लिए यह कोई नई बात तो
नहीं  
थी और वह-उसकी पत्नी बराबर अपने पति पर ही नज़र जमाए बैठी
है; उसकी ज़रा-जरा सी आवाज़ जैसे अपने कानों से पिए जा रही है। यह
जरूर है कि वह अपने समय से पहले ही बीत गई है।  
कभी-कभी वह आह
भर लेती है-““काश यह इस लोक के लिए भी उतने ही योग्य होते, जितने
कि परलोक के लिए हैं! तब फिर यहां भी जी सुख से रहता-जिंदगी आराम
में कटती, लेकिन...” फिर वह अपने मन को स्वयम ही आश्वासन दे लेती
है-“आत्मसम्मान की क्या रक्षा की जाए!-दो नावों पर तो पैर रखकर
नहीं चला जा सकता!”
 
 वह बराबर सुने ही जा रही है। 
 पल-पल पर उसकी झुर्रियोंदार मुद्रा
बदलती हैं; अब वह घबड़ाई-सी है।
और क्षणभर पहले ही तो खुशी उस
पर खेल रही थी। अब उसे याद आया-“अरे आज तो वृहस्पति है। और
रविवार के लिए घर में एक दाना भी नहीं है ।”--और याद आते ही उसके
मुख पर व्याप्त खुशी हल्की हुई, फिर क्रमशः धुंधली होकर उड़ गई, खिड़की
के धुंध में से उसने सूरज की तरफ देखा। बराबर देर हो रही है, और घर
में एक चम्मच गरम पानी भी नहीं है।  
  हाथ की सलाईयां चलनी बंद हो
जाती हैं-एक कालिमा-सी उसके मुख पर छा जाती है। बच्चे की तरफ
देखती है : उसे लगता है कि वह बस अब जगने ही वाला है। 

बेचारा बच्चा
कमजोर तो है ही, और उस पर भी उसके पीने के लिए एक बूंद दूध भी
नहीं है। उदासी की कलिमा घनी अंधियाली में बदल जाती है। सलाईयां
कांपती हैं और रुक रुक कर चलतीं हैं!
 
 और जब उसे यकायक ख्याल आ जाता है कि मियाद तो बीतने आई,
पर उसके बुंदे और चांदी की मोमबत्तियां तो अभी गिरवीं ही पड़ी हैं,-संदूक
खाली पड़ा है; लैंप भी बिक चुका है! 
 तब-तभी सलाईयां उसकी उंगलियों
में हत्यारे की छुरियों की तरह चलने लगती हैं! मुख की उदासी घनीभूत
होकर भौंहों पर जमा हो जाती हैं और ऐसा लगता है जैसे बस कोई तूफान
ही आनेवाला हो!-उसके गड्ढों में घुसी हुईं रूखी मटीली आंखों में जैसे

 


बिजली चमक उठी हो!

और वह बैठा पढ़ता ही रहा, जैसा का तैसा। उसे कुछ पता नहीं
कि इतनी देर में ही परिस्थिति में क्‍या परिवर्तन हो गया!  
 वह नहीं देखता
कि पत्नी ने मोज़ा बुनना बंद कर दिया है, उसका माथा व्यथा भार से दबा
जा रहा है, और मेरी ओर देख रही है, ऐसी दृष्टि से जो उसकी नस-नस
को हिला दे;-नहीं देखता कि उसके ओंठ कांप रहे हैं, मुंह तमतमा रहा
है! 
 वह किसी न किसी तरह अपने को रोके हुई थी; फिर भी तूफान तो
उसके अंतर से उमड़ा ही आता था, और ज़रा सा अवसर पाते ही वह टूट
भी पड़ेगा।

और वह अपने धर्मशास्त्र का एक वाक्य बहुत खुश होकर पढ़ रहा
था-“इसलिए यह मतलब निकलता है कि” वह आगे “तीन” कहने ही वाला
था, कि 'निकलता' के जोर ने जैसे चिनगारी पैदा कर ही दी-तो पत्नी
के दिल की बारूद को अब भड़का कर जला देने के लिए काफी थी-उभड़ती
हुई बाढ़ को जो बोध अब तक रोके हुए था, उसको इस एक शब्द ने ही
जैसे खोल दिया-और वह बाढ़ छूट निकली-सामने जो कुछ पाया, उसे
निगलती हुई वह तीव्र गति से वह चली-“निकलता है!...तू कहता है
निकलता है-तो निकल क्‍यों नहीं जाता, जो नवाब बना बैठा है!...” गुस्से
से उसकी आवाज़ भारी हो गई; फिर जैसे नागिन की तरह फुफकारती हुई
बोली-“निकल नहीं जाता! चुकती का दिन आ रहा है-आज वृहस्पति
है-बच्चा बीमार है-दूध की बूंद नहीं है-हाय ”
 
उसकी आंखें आग उगलने लगीं-चुसी और गड़हे में धंसी हुई छातियां
भभक उठीं-सांसों में से झंझावात बरस पड़ा। 
 और वह पत्थर बना बैठा था पत्थर!

खून जैसे सूख गया-सांस बंद हो गई! 
प्रेत की तरह अपनी जगह से उठा और किवाड़ों से लगकर खड़ा हो
गया और पतली की तरफ मुंह किया, तो देखा कि क्रोधावेश के मारे उसके
हाथ और जीभ दोनों जड़वत्‌ हो गए हैं।
 
 उसने आंखें ज़रा मीचीं और रूमाल को दांतों से दबाया-जोर से सांस
ली, और तब बोला-'सुन, तू जानती है 'पतिसेवा” के क्या मानी हैं?

 नहीं जानती और पति के अध्ययन में विघ्न डालती है-हरवक्त उसे कमाई करने
के लिए परेशान करती है-उफ॒! तू बता न आखिर इन चिड़ियों के बच्चों
को कौन खिलाता है, बोल न? 
 चुप क्‍यों है ?
भगवान में विश्वास नहीं
करती-दुनियादारी के मोह में उलझी रहना चाहती है-बेवकूफ कम्बख्त
औरत! अपने पति के काम में सहायता नहीं दे सकती, तो विघ्न भी क्‍यों
डालती है-नरक में जाएगी नरक में!” 

 वह चुप रहती है।
उसका मुख पीला ही पड़ता जाता है। कंपकंपी
बढ़ती ही जाती है। पति महोदय को शह मिल जाती है। पत्नी की घबराहट
उसमें दृढ़ता पैदा कर देती है-“अरे हरामज़ादी नरक की आग में पड़ेगी
नरक की आग में! पापिन, वहां तेरी जीभ खींची जाएगी जीभ! तब पापों
का फल भुगतेगी अच्छी तरह और पति का विरोध करने का मज़ा चक्खेगी !”
वह चुप थी, चुप रही।
 

 चेहरा सफेद फूक्‌ पड़ गया।

और वह मन में जानता है कि मैं गलती कर रहा हूं, व्यर्थ ही निर्दयी
बन रहा हूं, बेचारी की कमजोरी से नीच फायदा उठा रहा हूं-पर अब वह
भी करे तो क्या-गुस्सा हद से जो बाहर हो गया है! 
उसने उसे फिर धमकाना शुरू किया-“तू जानती है दफनाने के क्या
मानी हैं...नहीं जानती...कभी नहीं जान सकती...नरक में दफनाने के मानी
हैं खाई में फेंका जाना-और फिर ऊपर से पत्थरों की मार से उस खाई
का पाटा जाना-समझी ?  

कभी नहीं समझ सकती-कभी नहीं...तू ऐसे ही
दफनाई जाएगी!...और जानती है तपाना किसे कहते हैं? तेरी क्या खाक
समझ में आएगा-कभी समझ में नहीं आ सकता-कभी नहीं! अरी आग
में जलाई जाएगी आग में! और तेरा पेट फाड़कर उसमें पिघला हुआ सीसा
उंड़ेल दिया जाएगा-और कृत्ल समझती है-? 
तलवार से तेरा सिर काट
दिया जाएगा। इस तरह से फक से-और फांसी दी जाएगी तुझको फांसी!
सुनती है-फांसी दी जाएगी फांसी! अब समझी? कुछ नहीं समझी-नहीं
समझी! अरे कभी नहीं समझ सकती तू...कभी नहीं! पति का विरोध करने
से यही चारों सज़ाएं मिलती हैं! और करेगी अब कभी जबानदराजी! ऐ? 
बेचारी के लिए उसके दिल में दर्द उठ रहा था, पर आज पहली बार

 

 
उसकी पूरा-पूरा रौब जम सका है उसपर और वह समझा है कि मैं भी
मर्द हूं। बेवकूफ औरत! आज उसकी समझ में आया कि पतली को समझाना
कितना आसान है!

“ऐसा पाप पड़ता है अपने पति देवता का अपमान करने से, समझ
ले आज अच्छी तरह!”-वह एक बार जोर से चीखा और चल दिया-“ मैं
पढ़ने के कमरे में जा रहा हूं.-उसने ज़रा मुड़कर विनम्र स्वर में कहा,
और भड़ाक से दरवाज़ा बंद करके अंदर चला गया। 

दरवाजे की 'भड़ाक' से बच्चे की नींद खुल गई; भारी पलकें खुली;
मोम की-सी चिकनाई से झलझलाता हुआ पीला चेहरा हिला, और रोने की
एक मरगिल्ली आवाज उस कोठरी में रल गई। 
किंतु वह आपे से बाहर थी। जहां बैठी थी, बैठी रहीं कुछ सुना भी
नहीं।
 
 “हाय!” उसके घुटे हुए कलेजे से आवाज़ निकली-“तो यह बात
है,-क्या यही? इस लोक में तो कुछ है ही नहीं-परलोक की कौन जाने
वह कहता है फांसी लगेगी! पत्थर पड़ेंगे... ! आग में झोंकी जाएगी... ! सरकाटा
जाएगा...गला घोटा जाएगा...! फांसी लगेगी-! उबलता हुआ सीसा पेट
चीर कर उंड़ेला जाएगा-पति की बात न मानने पर-धर्म-शास्त्र के विरुद्ध
कार्य करने पर...हा-हा-हा-हा!” फिर वह एकदम जैसे अत्यंत व्यग्र हो
उठी-“हूं! मुझे फांसी लगेगी-लेकिन यहीं यहीं! अभी यहीं--इंतजार किसका
करना है अब?”


बच्चे ने और जोर से रोना शुरू किया, परंतु वह बहरी बनी रही। 

“रस्सी! रस्सी! और कोठरी में चारों तरफ वह पागल की तरह घूमने
लगी, कोना-कोना देखने लगी-“रस्सी! रस्सी! किधर गई? मैं चाहती हूं
मेरी हड्डी भी उसके हाथ न लगे। कम से कम इस नरक से तो पहले छुट्टी
ले लूं आज! जरा मजा तो चखे वह-बच्चे को एक दिन पाल कर तो देखे,
तब सब चर्बी छट जाएगी आंखों की! मैं अब बहुत सह चुकी हूं! अब
और नहीं सह सकूंगी । बस अब यह आखिर हैं--अंत होगा-होगा! रस्सी-रस्सी !”

उसकी अंतिम चीख़ ऐसी थी जैसे आग में जलते हुए किसी आदमी
की सहायता के लिए पुकार हो। 
 उसे याद है कि एक रस्सी कहीं न कहीं पड़ी है-“ओह ठीक है अंगीठी
में बंधी हुई है-अंगीठी में-वहीं होगी ज़रूर ।”
 वह दौड़ गई।
 अंगीठी से बंधी हुई रस्सी खोली-जैसे कोई अमूल्य निधि पा गई।
सिर उठाकर छत की तरफ देखा। लैंपवाला कुंदा मौजूद है। बस अब
मेज पर चढ़ने की कसर है। 

वह चढ़ती है-

पर मेज पर से उसने देखा कि बच्चा यकायक चौंक कर उठ पड़ा
है--और एक किनारे से झुक कर पालने के बाहर जाने की कोशिश कर
रहा है ।  
 कमजोर है ही...कहीं गिर...

और वह मरियल आवाज से सुबका,-“मा .... म्मा...म्मा !?

उसे नए सिर से गुस्सा चढ़ा-

रस्सी एक तरफ फेंक दी। मेज से कूद पड़ी, और बच्चे के पास जाकर
उसको फिर तकिए के सहारे लिटाकर थपथपाने लगी


“इसी के पीछे तो
परेशान हूं! मरने भी तो नहीं देता मुझे!  

 शांति से मैं मर भी तो नहीं सकती!
दूध चूसना चाहता है-दूध...मैं कहती हूं जहर चूस जहर! 
उसमें दूध क्‍या
कहां है!” और यह कहकर उसने अपनी चुसी हुई ढीली छातियां बच्चे के
मुंह में ठूंस दीं-““नहीं मानता तो ले...ले...चूस ले-खाजा-मार डाल मुझे!”

Listen to auto generated audio of this chapter
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel