इल्वला तथा वातापी दो राक्षस भाई थे । उन्हें यतियों तथा तपस्वियों से गहरा द्वेश था क्योंकि किसी तपस्वी ने उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद नहीं दिया था । उन्होंने अपने गुप्त शक्तियों से छल के साथ तपस्वियों एवं साधु और सन्यासियों को मार डालते थे ।

दोनों असुर भाई, भक्तों की भांति आदमी का भेष धारण करते थे तथा किसी साधु या तपस्वी को खाने पर बुलाते थे । इल्वला, बाद में अपने भाई वातापी को एक बकरे के रूप में परिणत कर देता था । इल्वला उस बकरी को मारता था तथा उसके माँस से भांति - भांति के व्यंजन बनाकर, आगंतुक यती या तपस्वी को खिलाता था ।

अतिथि जब खाना खा जाता, तब इल्वला अपने भाई वातापी को बुलाता था, 'वातापी, बाहर निकलो ।'

वातापी, आगंतुक के पेट को चीरकर बकरे के रूप में बाहर निकलता था। दोनों भाई इस प्रकार का खेल अपनी गुप्त शक्तियों के कारण खेला करते थे । बकरा फिर वातापी का रूप धारण कर जाता था । लेकिन आया हुआ अतिथि मर जाता था । इस रूप में ये दोनों असुर भाई अतिथियों के रूप में आये साधुओं तथा तपस्वियों को मार रहे थे ।

अगस्त्य महामुनि को इनके कुकृत्यों का पता चला । मुनि ने दोनों असुरों को मारना चाहा । अगस्त्य महामुनि असुर भाईयों के घर आये । बिन बुलाये आये हुए अतिथि को देखकर दोनों भाई बहुत प्रसन्न हुए।

उन्होंने मुनि का स्वागत ऐसा किया, 'आप के चरणों के स्पर्श से हमारा घर पवित्र हो गया । आज आपको खाना खिलाने का सौभाग्य हमें दिलाइए!'

अगस्त्य ने उनसे कहा कि मैं नदी में स्नान करके आऊँगा । इस बीच इल्वला ने हर समय की भांति वातापी को बकरा में, तदुपरांत उसके माँस से नाना प्रकार के व्यंजन में परिणत कर दिया ।

अगस्त्य के घर आने पर वही भोजन परोसा गया। अतिथि खाना खाने के बाद अपने पेट के अंदर के असुर को शाप दिया ।

अगस्त्य ने कहा – 'आप कितना भी बुलाओ, कोई चारा नहीं । मैं ने ऐसा भोजन नहीं खाया । आपका आतिथ्य भी अच्छा रहा ।'

इल्वला ने सामान्य तरीके में बुलाया 'वातापी बाहर चले आओ।'

अगस्त्य ने उससे कहा – 'तुम जितना भी बुलाओ, वातापी कैसे आयेगा? वह मेरे पेट में पच गया है।'

इल्वला बहुत क्रुद्ध हुआ तथा अगस्त्य को मारने के लिए तत्पर हुआ । अगस्त्य ने अपनी तपोशक्ति के बल से इल्वला को मार डाला । इस प्रकार दोनों असुर भाई मारे गये ।

 

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel