शमशान भूमि के एक ओर केरल की काली देवी का मन्दिर था। यह संहार की देवी है। कुछ ऐसे पागल थे जो इस देवी की पूजा करते थे। यहां का प्रधान पुजारी अघोरघंट था। उसका विश्वास था कि पशु, पक्षी और यहां तक कि मनुष्य की बलि देने से दैवी शक्ति प्राप्त की जा सकती है।

उसकी सहायक कपालकुंडला नाम की एक उन्मत्त पुजारिन थी। उसमें एक पागल स्त्री का बल था। वह देवी को प्रसन्न करने के लिए सब कुछ यहां तक कि अपराध भी करने को तैयार थी। प्रधान पुजारी अघोरघंट को जब सब तरह की बलियां देने पर भी दैवी शक्ति प्राप्त नहीं हुई|

तो उसने कपालकुंडला से कहा, “अब मुझे सबसे सुन्दर कन्या की बलि देनी पड़ेगी और मुझे विश्वास है कि मेरी इच्छा अवश्य पूरी होगी।”

"इसमें मैं आपकी सहायता करूंगी, गुरुजी|” कपालकुंडला बोली। "इस पद्मावती राज्य में मैंने सबसे सुन्दर कन्या देखी है। वह यहां के प्रधान मंत्री की पुत्री मालती है। मुझे थोड़ा-सा समय दीजिए मैं शीघ्र ही आपके काम के लिए उसे यहां लाकर उपस्थित कर दूंगी।"

इसके बाद कपालकुंडला मालती की खोज में रहने लगी। भगवती कामन्दकी के विहार से जब मालती अकेली लौट रही थी तो कपालकुंडला ने उसे रास्ते में देख लिया। उस पागल औरत ने मालती को बालों से पकड़ लिया, मारा और घसीटकर उसे काली मन्दिर में ले गई और अपने गुरू की भेंट कर दिया। वह बहुत खुश हुआ और उसने तत्काल ही बलि देने के सब प्रबन्ध कर डाले।

माधव जब मालती को ढूँढ़ रहा था तो उसे कापालिक लोगों का ख्याल आया। वे बलि देने के लिए लोगों को पकड़ लेते हैं। बस उसने अपना घोड़ा काली मन्दिर की ओर दौड़ा दिया। वह ऐन मौके पर जा पहुंचा। उसने देखा मूर्ति के सामने मालती मरने से पहले अपनी आखिरी प्रार्थना कर रही है। पुजारिन बहुत उत्तेजित होकर ढोल और खड़ताले बजा रही हैं।

पुजारी मालती का सिर एक खड्ग से काटने को तैयार है। बिना समय नष्ट किये माधव ने बिजली की फुर्ती से काम किया। उसने एक तीर से पुजारी का सिर धड़ से अलग कर दिया। यह देखकर पुजारिन एक तेज कटार लेकर माधव को मारने के लिए झपटी। माधव ने उसे एक टांग मारी और वह चीखती हुई दूर जा गिरी।

"क्रूर माधव, तुमने मालती को बचाने के लिए मेरे गुरू को मारा है। तुमने मुझे नहीं मारा क्योंकि मैं स्त्री हूँ। लेकिन तुम याद रखो कि मैं बदला ले सकती हूं|" वह चिल्लाई, “जिस आदमी ने नाग को मारा हो वह उसकी नागिन के जहरीले दांतों के रहते भला सुरक्षित कैसे रह सकता है।"

जब माधव मालती को लेकर जा रहा था तो एक भारी भीड़ भगवती कामन्दकी के नेतृत्व में उधर से उमड़ी हुई आ रही थी। जो कुछ वहां हुआ था उसकी सूचना उन्हें मिल चुकी थी और मालती के बाल-बाल बच जाने से सब बहुत खुश थे।

दिन निकलते गये। नन्दन के विवाह की बात से जो तनाव पैदा हो गया था वह बढ़ रहा था। माधव निराश होता जा रहा था और मालती नन्दन से विवाह करने के बजाये अपने जीवन का अन्त कर देना चाहती थी।

भगवती कामन्दकी गहरे सोच में थी कि मालती और माधव को मिलाने की समस्या को कैसे सुलझाया जाय। लती की माता ने उससे कहा कि वह विवाह से पहले नगर में देवी के मन्दिर में जाकर प्रार्थना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करे। मालती ने भगवती कामन्दकी से भी वहां जाने की अनुमति ले ली।

“मेरी प्यारी बच्ची," कामन्दकी बोली, “चिन्ता मत करो। हम इस तरह योजना बनायेंगे कि अपने उद्देश्य में सफल हो सकें। अब तुम लवंगिका को लेकर मन्दिर जाओ।"

मालती और लवंगिका मन्दिर पहुंच गई। माधव और मकरन्द भगवती कामन्दकी की आज्ञानुसार एक खम्भे के पीछे छिपे हुए उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। लवंगिका ने मालती को याद दिलाया कि उसकी माता जी की इच्छा थी कि विवाह से पहले देवी का पूजन कर के उनका आशीर्वाद प्राप्त कर लिया जाय। मालती बहुत परेशान थी।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel