मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म

वह हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा
रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म

Comments
आमच्या टेलिग्राम ग्रुप वर सभासद व्हा. इथे तुम्हाला इतर वाचक आणि लेखकांशी संवाद साधता येईल. telegram channel