तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि उस में आग दबी है
 
दिला ये दर्द ओ अलम भी तो मुग़्तनिम है कि आख़िर
न गिर्या-ए-सहरी है न आह-ए-नीम-शबी है

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