कुबेरका अनुचर कोई यक्ष, अपने कार्यमे असावधानी करनेके कारण " एक वर्षतक स्त्रीसे नही मिल पाओगे" - ऐसे, कुबेरके कठोर शापसे सामर्थ्यहीनसा होकर प्रियाके दु:सह वियोगसे कातर हुआ " रामगिरि " पर्वतके उन आश्रमो मे दिन बिता रहा था, जिनके जल वनवास कालमे सीताजीद्वारा स्नान करलेनेसे तीर्थरुप हो गये है और जो घनी छायावाली वृक्षो से सदा घिरे रहते है ॥१॥

प्रियाके विरहसे यक्ष इतना दुबला हो गया था कि उसके हाथोसे सोनेके कडे नीचे खिसक गये थे । इसी अवस्थामे उस कामी यक्षने कुछ ( आठ ) महीने रामगिरि पहाड पर बिताये । आषाढ मासके प्रसिद्ध ( हरिशयनी एकाद्शीके ) दिन उसने पहाड की चोटी से सटे हुए मेघ को देखा, जो कि तिरछे प्रहारसे मिट्टी उखाडते हुए हाथी-सा दीख रहा था ॥२॥

कुबेर का अनुचर वह यक्ष, अपने आँसुओंको अन्दर ही रोककर ( डबडबायी आँखोसे ), प्रियासे मिलनेकी उत्कंठा उत्पन्न करनेवाली उस मेघमे सामने खडा होकर देरतक सोच रहा - कि वर्षाकालके मेघ को देखकर तो सुखी ( सुरतसुखासक्त ) व्यक्तिकी भी वासना जागृत हो जाती है । जिस बेचारेकी स्त्री इतनी दूर हो, उसकी ( मेरे जैसी व्यक्ती की ) क्या दशा होगी ? ॥३॥

( वर्षाकाल आ रहा है, कही विरहमे मेरी प्रिया प्राणत्याग ना करदे इस आशंकासे ) श्रावण समीप होनेसे अपनी प्रियाके प्राणोका आसरा चाहते हुए यक्षने, मेघद्वारा अपना कुशल - समाचार भेजनेकी इच्छासे प्रसन्न होकर ताजे कुरैयाके फ़ुलो से मेघ के लिये पूजासामग्री तैयार की और प्रेमपूर्ण शब्दो से उसका स्वागत किया ॥४॥

कहाँ वो धूवाँ, प्रकाश, जल और वायु इन निर्जीव पदार्थो के सम्मिश्रणसे बना हुआ मेघ, और कहाँ कुशल इन्द्रियोवाले प्राणियोसे पहुँचाये जानेयोग्य सन्देश वाक्य ? ( अर्थात इन दोने मे किसी प्रकार साम्य नही ) । फ़िरभी विरहजन्य मोहके कारण इस बात का विचार न करते हुए यक्षने मेघसे प्रार्थना की । क्योकी कामवासना से सताये हुये व्यक्तियोमे विवेक नही रह जाता ॥५॥

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel