थक गया हुं जिंदगी
अब और नही सहा जाता,
सबको मुझसे उम्मीदे है
और मुझसे कहा नही जाता!

जब भी मै दौडता हुं
मेरे अपने पिछे छूट जाते है
उन्हे साथ लेकर
अब रास्ता काटा नही जाता!

मुझे भला-बुरा कहनेवाले
मेरे नामसे जलते थे
जब ध्यानसे देखा तो
उसमे पराये नही थे!

चेहरोंको पढ न पाया
मेरा सर झुका था
जिनके कदमोंपर मेरी नजरे थे
उनकी आंखोंमे धोखा था!

सबको कुछ चाहत थी
इसलिये मेरा वजूद जिंदा था
उनके काम निपट गये
अब मै सिर्फ बोझ था!

रघू व्यवहारे.
औरंगाबाद.

आपण साहित्यिक आहात ? कृपया आपले साहित्य authors@bookstruckapp ह्या पत्त्यावर पाठवा किंवा इथे signup करून स्वतः प्रकाशित करा. अतिशय सोपे आहे.
Comments
आमच्या टेलिग्राम ग्रुप वर सभासद व्हा. इथे तुम्हाला इतर वाचक आणि लेखकांशी संवाद साधता येईल. telegram channel